Monday, June 6, 2011

क्यों छिड़ी रामलीला मैदान पर 'महाभारत.......रामदेव के खिलाफ कार्रवाई पर अमेरिकी भारतीय छात्र भड़के...










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क्यों छिड़ी रामलीला मैदान पर 'महाभारत'....

सोमवार, 6 जून 2011( 13:49 IST )

जब बाबा रामदेव द्वारा भष्टाचार के विरोध व कालेधन को भारत लाने का आंदोलन थोड़ा शांत होने लगा था तब एकाएक दिल्ली पुलिस ने गृह मंत्रालय के आदेश पर अमल करते हुए रात 1.15 मिनट पर रामलीला मैदान में 'महाभारत' छेड़ दी। दिनभर की जद्दोजहद के बाद गहरी नींद में सोए हजारों लोगों को संभलने का मौका दिए बिना पुलिस ने उन्हें रामलीला मैदान खाली करने का आदेश दे दिया। इसके बाद कई घंटो तक मची अफरा-तफरी में पथराव, लाठियां और आंसूगैस के गोले तक चले और कई लोग घायल हुए।

आखिर क्यों हुअ एक्शन : पर इस पूरे घटनाक्रम से जो बातें बाहर आई है उनके मुताबिक बाबा के खिलाफ हुआ यह एक्शन एकाएक नहीं था बल्कि इसकी पूरी तैयारी पहले से ही कर ली गई थी। अगर नहीं तो पुलिस और रेपिड एक्शन फोर्स के 5000 जवान इतने शॉर्ट नोटिस पर इतने बड़े एक्शन के लिए आखिर कैसे तैयार थे।

दरअसल खुफिया एजेंसियों ने सरकार को पहले ही चेता दिया था कि जिस रामलीला ग्राउंड में 5000 लोगों के लिए योग शिविर आयोजित करने की इजाजत है वहां 30-50 हजार लोग जुटने वाले हैं।

बाबा की जान को खतरा : इतनी भीड़ को संभालने के लिए रामलीला मैदान व आस-पास के इलाके में इंतजाम करना बेहद मुश्किल होगा। इसके बाद खुफिया एजेंसियों ने बाबा रामदेव को जान का खतरा होने की रिपोर्ट देते हुए सरकार को अलर्ट किया कि अप्रिय स्थिति में इतनी भीड़ को संभालना मुश्किल होगा और इससे पूरी दिल्ली पर असर पड़ सकता है।

हर दिन हजारों लोगों की आमद होते देख पुलिस-प्रशासन ने रामलीला मैदान पर इस आंदोलन की इजाजत रद्द करने और बात न मानने की स्थिति में पुलिस कार्रवाई की तैयारी कर ली थी।


मनाने की कवायद :
इस बीच केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों ने बाबा और उनके सहयोगियों से बातचीत कर मामला सुलझाने की कोशिश करना जारी रखी। कई मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक रामदेव और सरकार के बीच कुछ मामलों पर सहमति भी बन गई थी जिसका खुलासा रामदेव ने प्रेस कांफ्रेंस में भी किया था। लुछ सूत्रों के मुताबिक रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने एक समझौता पत्र भी कपिल सिब्ब्ल को सौंपा था। जिसमें आंदोलन को एक-दो दिन में खत्म करने की बात कही गई थी।


हाई टेंशन ड्रामा :
पर स्थिति में नाटकीय बदलाव तब आया जब 4 जून की रात लगभग 11.15 बजे रामलीला मैदान में मौजूद केंद्र सरकार के प्रतिनिधियों कपिल सिब्‍बल और सुबोध कांत सहाय को फोन पर सूचना मिली कि बाबा रामदेव व उनके सहयोगी तय समझौते को न मानते हुए अनशन को जारी रखेंगे। रामदेव और उनके सहयोगियों की इस वादाखिलाफी की सूचना की पुष्टि होते ही सिब्बल और सहाय ने गृह मंत्रालय से बातचीत की जिसके बाद दिल्‍ली पुलिस को रामलीला मैदान में 'एक्शन' के लिए हरी झंडी मिल गई।

क्या बाबा ने दिया धोखा! आचार्य बालकृष्ण के इस पत्र के बारे में बाबा के एक निकट सहयोगी ने कहा कि समझौता पत्र सोची-समझी एक सोची समझी रणनीति का हिस्‍सा था, क्योंकि यदि ऐसा नहीं किया जाता तो सरकार अनशन शुरु ही नहीं होने देती। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस पत्र का मतलब यह नहीं था कि रामदेव सरकार के आगे झुक गए हैं।


पर गलती किसी भी रही हो
, अब सरकार पर इस कार्यवाई का दांव उलटा पड़ता दिख रहा है। सुप्त पड़े राजनीतिक दल तो इस मौके को भुनाने में लगे ही हैं, सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र से इस मामले पर जवाब तलब कर लिया है।

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रामदेव के खिलाफ कार्रवाई पर अमेरिकी भारतीय छात्र भड़के

वॉशिंगटन, सोमवार, 6 जून 2011( 12:25 IST )
अमेरिका में अध्ययन कर रहे भारतीय छात्रों ने योग गुरु बाबा रामदेव और उनके समर्थकों के खिलाफ नई दिल्ली में की गई पुलिस कार्रवाई की निंदा की है और कहा है कि ऐसा करके सरकार ने सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार और जनता का विश्वास खो दिया है।

छात्रों ने इस बाबत भारत के राष्ट्रपति को लिखा एक ज्ञापन भारतीय दूतावास को सौंपा जिसमें कहा गया है कि छात्र और भारत के जिम्मेदार नागरिक होने के नाते हम भारत सरकार की ओर से की गई इस कार्रवाई की स्पष्ट तौर से निंदा करते हैं।

ज्ञापन पर मेरीलैंड विश्वविद्यालय (यूएमडी) में अध्ययनरत भारतीय छात्रों ने हस्ताक्षर किए। तीन संगठनों इंडियन स्टूडेंट ग्रुप (यूएमडी), कॉलेज पार्क डीईएसआई और स्टूडेंट काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी छात्रों का प्रतिनिधित्व किया।

ज्ञापन में कहा गया है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने में नाकाम रहने और अपने नागरिकों को संवैधानिक अधिकार से वंचित करने के चलते, हमारा मानना है कि सरकार सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार और जनता का विश्वास खो चुकी है। ऐसे में इस सरकार को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त कर देना चाहिए।

अमेरिका में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की ओर से भारतीय दूतावास को सौंपे गए ज्ञापन में कहा गया है कि आधी रात के बाद पुलिस की 70 हजार से अधिक निर्दोष लोगों को खदेड़ने की कार्रवाई आपातकाल के उस काले अध्याय की याद दिलाती है जो हमने अब तक किताबों में ही पढ़ा है।

छात्रों ने कहा कि चारों ओर से घिरे हुए परिसर में पुलिस की कार्रवाई से भगदड़ मच सकती थी और कई निर्दोष लोगों की जान भी जा सकती थी।

ज्ञापन में कहा गया है ‘निहत्थे लोगों में महिलाएं, बच्चे, बुजुर्गों सहित सभी आयु वर्ग के लोग थे जिन पर आंसू गैस के गोले छोड़े गए और लाठीचार्ज किया गया। शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन पर सरकार की ओर से किया गया बल प्रयोग कुछ लोगों द्वारा अपना पक्ष रखने के लिए हिंसा के प्रयोग को जायज ठहराने जैसा प्रतीत होता है।

मेरीलैंड विश्वविद्यालय के शोध छात्र आशुतोष गुप्ता ने प्रश्न किया कि अगर जनता शांतिपूर्ण प्रदर्शन नहीं कर सकती तो लोकतंत्र में जनता और क्या कर सकती है? जिस तरीके से, सरकार ने शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे लोगों पर कार्रवाई की है वह स्वीकार्य नहीं है। (भाषा)

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