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मन के किसी कोने मैं ,पलकों पे रहती है ,
पर मुश्किल से होटों पे आती है .आकांक्षा
कभी झूटी सी कभी अधूरी होती है ,
जब भी सच्ची ,पूरी होती है आकांक्षा
कभी निर्मल , छलि कभी ,कोमल कभी ,
भोली कभी होती है आकांक्षा
कभी स्वार्थ है ,कभी है इच्छा ,कभी विव्बस्ता ,
कभी स्वेच्छा होती है आकांक्षा
कभी बूँद है , कभी है सागर ,
कभी कहीं चुप कहीं ऊजागर होती आकांक्षा
नही कोई प्रवीण जो इनको रोक सके ,
अंत हीन होती है ,ऐसी होती है
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