Monday, September 21, 2009

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,


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इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।

एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।

एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।

एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।

निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।

दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।


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ख्वाब टूटे हुए, दिल दुखाते रहें...
देर तक वो हमें, याद आते रहें...
काट लें आंसुओं में जुदाई की रात...
नगमे गाते रहें, गुनगुनाते रहें..
तेरे जलवे पराये , हुए गम नहीं...
ये तसल्ली भी आपने लिए कम नहीं..
हमने तुमसे किया था, जो वादे वफ़ा...
सांस जब तक चली, हम निभाते रहें...
किसको मुजरीम कहें , और करें क्या गिला ??
रिश्ता टूटा, ना उनकी ना मेरी रजा...
अपनी किस्मत में कभी, वो थी ही नहीं...
ख्वाब पलकों में जिसके सजाते रहें...
ख्वाब पलकों में जिसके सजाते रहें...

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