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कि फिर आज
गम-ए-अश्क
बहाये हैं
आँखों से छलकते हैं
पैमाने मे उतर आये हैं।
सिसकती है आह
दर्द मचलता है
आब-ए-अश्क है के
पैमाने से भी झलकता है।
उम्मीद अब धुंधली सी
नज़र आती है
तेरे आगोश मे
गरम सांसें
सिमट सी आती हैं।
आरजू फ़िर दम भरती है
तेरी परछाई है कि छू
के मुझे सुन्दर करती है
अब तमन्ना है
कि मचल जाऊँ
तू आये
और....
अगर मै कहूँ कि
मुझे तेरा इन्तज़ार नहीं थी
तो झूठ होगा
मुस्कुराहट पलकों पे
उतर आयी
अगर तू मिलने आ जाये
खुदा जाने
खुदा की मंजूरी
जो थी अधूरी
गज़ल
तेरे एहसास ने कर दी पूरी।
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तमन्ना फिर मचल जाए
अगर तुम मिलने आ जाओ।
यह मौसम ही बदल जाए
अगर तुम मिलने आ जाओ।
मुझे गम है कि मैने जिन्दगी में कुछ नहीं पाया
ये गम दिल से निकल जाए
अगर तुम मिलने आ जाओ।
नहीं मिलते हो मुझसे तुम तो सब हमदर्द हैं मेरे
ज़माना मुझसे जल जाए
अगर तुम मिलने आ जाओ।
ये दुनिया भर के झगड़े घर के किस्से काम की बातें
बला हर एक टल जाए
अगर तुम मिलने आ जाओ।
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याद है इक दिन
मेरी मेज़ पे बैठे-बैठे
सिगरेट की डिबिया पर तुमने
एक स्केच बनाया था
आकर देखो
उस पौधे पर फूल आया है !
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खुशबू जैसे लोग मिले अफ़साने में
एक पुराना खत खोला अनजाने में
जाना किसका ज़िक्र है इस अफ़साने में
दर्द मज़े लेता है जो दुहराने में
शाम के साये बालिस्तों से नापे हैं
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में
रात गुज़रते शायद थोड़ा वक्त लगे
ज़रा सी धूप दे उन्हें मेरे पैमाने में
दिल पर दस्तक देने ये कौन आया है
किसकी आहट सुनता है वीराने मे ।
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