Monday, September 21, 2009

दर्द जो दिल मैं है...


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दर्द जो दिल मैं है...

किताबों के पन्ने को पलट के सोचता हूँ,
यूं बदल जाए मेरी ज़िन्दगी तो क्या बात हो.
किताबों मैं रोज़ मिलते हैं जो,
हकीकत मैं मिल जाये तो क्या बात हो.
कुछ मतलब के लिए दूंदते हैं
मुझे बिन मतलब के कोई आये तो क्या बात हो.
कत्ल करके सब ले जायेंगे,
दिल मेरा कोई बातो से ले जाये तो क्या बात हो.
जो शरीफों की शराफत मैं बात न हो,
एक शराबी कह जाये तो क्या बात हो.
अपने जिंदा रहने तक तो ख़ुशी दूंगा सबको,
जो किसी को मेरी मौत ख़ुशी दे जाए
तो क्या बात हो!!!!


तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करू, कुछ कहते हुए भी डरता हूँ
कंही भूल से तू ना समझ बैठे, कि मैं तुझ से मोहब्बत करता हूँ

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