Hi this is Manthan Aryan is here. ***************************** आसमा से उपर.... एक उड़ान की ख़्वाहिश है..!! जहाँ हो हर क़दम सितारो पर.... उस ज़मीन की ख़्वाहिश है..!! जहाँ पहचान हो लहू की हर एक बूँद की.... उस नाम की ख़्वाहिश है..!! जहाँ खुदा भी आके मुझसे पूछे..... "बता, क्या लिखू तेरे मुक्क़दर मे....?" उस मुकाम की ख़्वाहिश है..!! *************************** इस अजनबी सी दुनिया में, अकेला इक ख्वाब हूँ. सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ. जो ना समझ सके, उनके लिये “कौन”. जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ
Saturday, June 11, 2011
सरदार पटेल ने पूरा नहीं होने दिया पं. नेहरू का ख्वाब
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सरदार पटेल ने पूरा नहीं होने दिया पं. नेहरू का ख्वाब
Jun 11, 09:11 am
अहमदाबाद [शत्रुघ्न शर्मा]। अयोध्या के विवादित ढांचे से देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू भी कहीं न कहीं जुड़े थे। वह पांचवे दशक में सोमनाथ मंदिर की तर्ज पर सरकारी खजाने से विवादित ढांचे का पुनर्निर्माण कराना चाहते थे, लेकिन लौह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल ने उनकी इच्छा को परवान नहीं चढ़ने दिया। सरदार पटेल ने इसके लिए सरकारी खजाने से एक रुपया भी देने से साफ इंकार कर दिया।
पटेल की दलील थी कि सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार जनभागीदारी से हुआ है। ऐसे में विवादित ढांचे का पुनर्निर्माण सरकारी खजाने से कराने का प्रश्न ही नहीं उठता।
यह खुलासा सरदार पटेल की बेटी मणीबेन की डायरी के अंशों से हुआ है। सरदार पटेल मेमोरियल ट्रस्ट अहमदाबाद मणीबेन की इस डायरी के पुर्नप्रकाशन की तैयारी कर रहा है। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस ट्रस्ट के अध्यक्ष दिनशा पटेल वर्तमान में मनमोहन सरकार के काबीना मंत्री हैं। डायरी के जल्द बाजार में आने की संभावना है। इसके बाजार में आने पर कांग्रेस की मुसीबत बढ़ सकती है।
मणीबेन की डायरी के अंशों में साफ कहा गया है कि कांग्रेस की हिंदू विरोधी मानसिकता पं. नेहरू के जमाने से चली आ रही है। कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पुरानी है, क्योंकि उसने हमेशा मुसलमानों को वोट बैंक के नजरिये से आंका।
डायरी के अंशों में आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी, पं. नेहरू, सुभाष चन्द्र बोस और सरदार पटेल में तमाम मुद्दों पर गंभीर मतभेदों की बात भी शिद्दत से स्वीकारी गई है, लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि सरदार पटेल चूंकि महात्मा गांधी का काफी सम्मान करते थे। इसलिए वह उनके निर्देशों का पालन किया करते थे।
डायरी में कश्मीर, हैदराबाद रियासत के एकीकरण के मुद्दे पर नेहरु व सरदार में मतभेद की बात भी कबूली गई है। इसमें कहा गया है कि कश्मीर को लेकर नेहरु के राजनीतिक प्रयासों को सरदार ने बचपना तक कह दिया था।
उड़ीसा में आईजीपी की नियुक्ति पर 21 सितंबर 1950 की एक घटना का उल्लेख करते हुए मणीबेन ने डायरी में उल्लेख किया है कि प.नेहरू तथा मौलाना आजाद इस स्तर पर भी राष्ट्रवादी विचारधारा के बजाए हिंदू-मुस्लिम के रूप में सोचते थे। डायरी में इसे विकृत धर्मनिरपेक्षता बताते हुए सरदार के लिए बाधक बताया गया है।
सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे तथा योग गुरु बाबा रामदेव भले आज भ्रष्टाचार तथा लोकपाल बिल की लड़ाई लड़ रहे हों ,लेकिन जुलाई 1950 को खुद सरदार पटेल ने रफी अहमद किदवई तथा फिरोज गाधी पर रिश्वत लेकर लाईसेंस बेचने के सबूत देने के बावजूद नेहरू चुप रहे। अगस्त 1950 में किदवई ने यहा तक कह दिया था कि उनके खिलाफ कार्रवाई हुई तो वे नेहरु को ब्लैकमेल करेगे।
मणिबेन ने मुसलमानों को भारत माता काऐसा छोटा बेटा बताया है जिसे जानबूझकर इस दलदल में धकेला गया है।
ट्रस्ट के संयुक्त सचिव प्रभाकर खमार बताते है कि इनसाइड स्टोरी ऑफ सरदार पटेल-द डायरी ऑफ मणीबेन पटेल 1934-1950 में देश की राजनीति के उन स्याह पन्नों पर प्रकाश डाला गया है जो अभी तक अछूते थे। डायरी में सरदार की प्रतिभा को समस्याओं से संघर्षरत् यौद्धा के रूप में उभारा गया है।
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