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बस एक हाँ के इंतज़ार में रात यूँही गुज़र जायेगी....
अब तो उलझन है साथ मेरे नींद कहाँ आएगी....
सुबह की किरण न जाने कौन सा संदेसा लाएगी...
रिमझिम सी गुनगुनायेगी या प्यास अधूरी रह जायेगी...
सोंचते-सोंचते शायद बस यह रात गुज़र जायेगी...
मोहब्बत की फितरत है येही बाज़ कहाँ आएगी...
प्यार की अंस में ज़िन्दगी सिमट सी जायेगी...
और गर ना हुई तो ऐ दोस्त फिर एक बार क़यामत आएगी....
इस दीवाने की सलाहियत में फिर भी कोई कमी न आएगी....
जज़्बा है पाक मेरा यह कायनात भी सर झुकायेगी...
पर ज़िन्दगी और मौत तो फिर भी मेरी उन्ही हाँथ में जायेगी...
जिसकी याद में शायद यह सारी रात गुज़र जायेगी..... "
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