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मासूम सी मोहब्बत का बस इतना सा फ़साना है..
कागज की हवेली है, बारिश का ज़माना है..
क्या शर्त-ए-मोहब्बत है, क्या शर्त-ए-ज़माना है ..
आवाज़ भी जख्मी है और वो गीत भी गाना है ..
उस पार उतरने की उम्मीद बहुत कम है..
किश्ती भी पुरानी है, तूफ़ान भी आना है...
समझे या न समझे वो अंदाज़-ए-मोहब्बत का...
एक ख़ास को आँखों से एक शेर सुनाना है..
भोली सी अदा, कोई फिर इश्क की जिद पर है..
फिर आग का दरिया है....
और डूब के जाना है..
कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है,
मैं तुझसे दूर कैसा हुँ तू मुझसे दूर कैसी है
ये मेरा दिल समझता है या तेरा दिल समझता है !!!
समुँदर पीर का अंदर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आसुँ प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता ,
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता !!!
मुहब्बत एक एहसानों की पावन सी कहानी है
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है,
यहाँ सब लोग कहते है मेरी आँखों में आसूँ हैं
जो तू समझे तो मोती है जो न समझे तो पानी है !!!
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हँगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पला बैठा तो हँगामा,
अभी तक डूब कर सुनते थे हम किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हँगामा !!!
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