Thursday, December 11, 2008

हमारा (हम युवाओं ) का भी कुंछ फ़र्ज़ बनता है.

अगर हमारे देश के वीर सिपाही हमारे LOC की रक्षा करना छोड़ दे तो सोचिये की हम कितने देर अपने घरों मैं सुरक्षित रह सकते हैं? उनका काम अगर देश की सीमाओं पर दुश्मन से लड़ना है तो हमारा (हम युवाओं ) का भी कुंछ फ़र्ज़ बनता है.
वो अगर देश की बाहरी दुश्मनों से लड़ रहे हैं उन्हें मार रहे हैं तो हमें अपने देश के अन्दर के दुश्मनों को ख़तम करना होगा , मारना होगा हर उस गद्दार को जो देश से गद्दारी करता है , जो देश मैं भ्रष्टाचार बढा रहा है , जिसके इशारे पर आज अपराध फल फूल रहा है , जो अपनी कुर्सी के खातिर कही भी किसी को भी मरवा देता है , अपनी कुर्सी के खातिर अपराधियों का साथ देता है

शहीदों की मज़ारों पर लगेंगे हर बरस मेले,
वतन पे मिटने वालों का यही बाकी निशां होगा...


जब नमन शहीदों को करता,तब रक्त हिलोरें लेता है।
भारत मां की पीड़ा का स्वर,फिर आज चुनौती देता है।
अब निर्णय बहुत लाजमी है, मत शब्दों में धिक्कारो।
सारे भ्रष्टों को चुन-चुन कर, चौराहों पर गोली मारो।
हो अपने हाथों परिवर्तन,तन में शोणित का ज्वार उठे।
विप्लव का फिर हो शंखनाद, अगणित योद्धा ललकार उठें।

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