Hi this is Manthan Aryan is here. ***************************** आसमा से उपर.... एक उड़ान की ख़्वाहिश है..!! जहाँ हो हर क़दम सितारो पर.... उस ज़मीन की ख़्वाहिश है..!! जहाँ पहचान हो लहू की हर एक बूँद की.... उस नाम की ख़्वाहिश है..!! जहाँ खुदा भी आके मुझसे पूछे..... "बता, क्या लिखू तेरे मुक्क़दर मे....?" उस मुकाम की ख़्वाहिश है..!! *************************** इस अजनबी सी दुनिया में, अकेला इक ख्वाब हूँ. सवालों से खफ़ा, चोट सा जवाब हूँ. जो ना समझ सके, उनके लिये “कौन”. जो समझ चुके, उनके लिये किताब हूँ
Sunday, April 18, 2010
कुछ पल के लिए अपनी आवाज़ में खो जाना चाहता हूँ ..
समुंदर के किनारे बैठकर जोर से चिल्लाना चाहता हूँ
कुछ पल के लिए अपनी आवाज़ मैं खो जाना चाहता हूँ
सबकी सुनकर थक गया हूँ अपनी भी किसी को सुननना चाहता हूँ
जिम्मेदारियों से नहीं कतराता पर इंसान हूँ कुछ वक़्त चैन से मै भी बिताना चाहता हूँ
रोज़ की उलझनों से दूर होकर बिना उलझनों के कुछ लम्हे जीना चाहता हूँ
बच्चो के जैसे हर चोट्टी बात पर खुलकर हसना चाहता हूँ
शाकी के हाथो दो जाम होठों से लगाना चाहता हूँ
हर गम को हमेशा के लिएभुलाना चाहता हूँ
हकीकत को भूल सपनो की दुनिया में जाना चाहता हूँ
प्यार भरी दुनिया में भी अजमाना चाहता हूँ
थोडी देर जिंदगी,ऐसे पलो में बिताना चाहता हूँ
हवा में उड़ने के लिए दो पंख लगाना चाहता हूँ
झूठा ही सही पर ख़ुशी का एक बहाना चाहता हूँ
दोस्तों के साथ बितायी यादें फिर से दहुराना चाहता हूँ
मस्ती में कुछ पल में भी गवाना चाहता हूँ
किसी के प्यार पर में भी इतराना चाहता हूँ
गले लगाकर उससे ये बताना चाहता हूँ
प्यार भरा ये रिश्ता उसके साथ निभाना चाह्ता हूँ
अपने नाम के साथ उसका नाम लिखवाना चाहता हूँ
फूलो भरा हार उससे ही पहनना चाहता हूँ
खुशियों का ऐसा घर बसना चाहता हूँ
कुछ पल के लिए अपनी आवाज़ में खो जाना चाहता हूँ ..
हमारी आह से पानी मे भी अंगारे दहक जाते हैं ;
हमसे मिलकर मुर्दों के भी दिल धड़क जाते हैं ..
गुस्ताख़ी मत करना हमसे दिल लगाने की साकी ;
हमारी नज़रों से टकराकर मय के प्याले चटक जाते हैं....
.........♥MaNtHaN ArYaN (๏̯͡๏)..is Here.!
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jyada khud ki tareef nahi karta hun
अल्फ़ाज़ों मैं वो दम कहाँ जो बया करे शख़्सियत हमारी,
रूबरू होना है तो आगोश मैं आना होगा,
यूँ देखने भर से नशा नहीं होता जान लो साकी,
हम इक ज़ाम हैं हमें होंठो से लगाना होगा
शोला हूं भडक्ने की गुज़ारिश नहीं करता
सच मुह से निकल जाता है कोशिश नहीं करता
गिरती हुई दीवार का हमदर्द हूं लेकिन
चढ्ते हुए सूरज की परस्तीश नहीं करता
माथे के पसीने की महक आए ना जैस से
वो खून मेरे जिस्म में गर्दिश नहीं करता
हमदर्द ये एहबाब से डरता हून 'मुज़फ़्फ़र'
मैं ज़ख़्म तो रखता हू नुमाइश नहीं करता
.........♥MaNtHaN ArYaN (๏̯͡๏)..is Here.!
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