Saturday, December 20, 2008

मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है


मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई
वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर की अब तक
जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है
उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती|

***************************



दोस्त होता है ऐसे
दीयों के लिए बत्ती जैसे
अन्धो के लिए लाठी जैसे
प्यासे के लिए पानी जैसे
लेखक के लिए कलम जैसे
बीमार के लिए दवाई जैसे


कुम्हार के लिए माटी जैसे
कीसान के लीये खेती जैसे
भक्तों के लीये आस्था जैसे
मरने वाले के लिए जिन्दगी जैसे

Last मे आप से एक ही बात है कहना
दोस्त को बुरा लगे ऐसा कोई काम ना करना
खुद भी खुश रहना और दोस्तो को भी रखना
चाहे कितनी भी बडी मुश्किल हो दोस्त का साथ ना छोडना

No comments: